“उत्तर प्रदेश पुलिस की क्रूरता और अत्याचार की हद पार! Uttar Pradesh police’s cruelty and atrocities have crossed all limits
मोहित पाण्डेय की हिरासत में मौत कोई हादसा नहीं, बल्कि सत्ता और पुलिस की हैवानियत का उदाहरण है।
क्या हमारी पुलिस का यही चेहरा है? दिवाली से पहले एक परिवार की खुशियां छीन ली गईं—पानी तक नहीं दिया, पिटाई की, और अब चुप्पी साध ली गई।
मुख्यमंत्री और प्रशासन की मूक सहमति क्या बताती है? क्या यही रामराज्य का वादा था?
कब तक निर्दोष लोगों की लाशें गिरती रहेंगी और कब तक जिम्मेदार लोग बचते रहेंगे?
जनता अब सवाल पूछेगी, और इस बार जवाब चाहिए।
Uttar Pradesh police’s cruelty and atrocities have crossed all limits
मोहित पांडे का मर्डर उन लोगों के मुंह पर भी करारा तमाचा है जो इसी उत्तर प्रदेश पुलिस के द्वारा कस्टडी में मारे जाने पर या किसी मुस्लिम,दलित, पिछड़े के फर्जी एनकाउंटर किए जाने पर इसी सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं, ऐसे लोगो के लिए मै बस यही कहूंगा कि…
इसलिए सरकार किसी भी राज्य की पुलिस को फ्री हैंड नही करती उसको राजनीति में दबाकर रखती है जिसका मुख्य कारण ये रहा । यूपी पुलिस इतना भयमुक्त हो चुकी है की कोई भी लोकप में मर जाए तो फर्क ही नहीं पड़ता। मुख्यमंत्री को इस मामले में खुद संज्ञान लेना चाहिए और पुलिस की कार्यप्रणाली पर कंट्रोल करना चाहिए
“लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,
इस शहर में सिर्फ़ हमारा ही मकान थोड़े है।
हमारे साथ चलो, इस जुल्म के खिलाफ़,
के सिर्फ़ खामोश रहना ही इंसानियत थोड़े है।”
कम से कम मेरी लेखनी तो जाति धर्म देखकर नहीं चलती ,जब जब जहां जहां अन्याय होगा वहां वहां मेरी कलम जरूर चलेगी।