मौलिक कर्तव्य क्या हैं??? Fundamental Duties
भारतीय संविधान में “मूल कर्तव्य” (Fundamental Duties) को संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम 1976 के माध्यम से जोड़ा गया था।
Fundamental Duties
इन्हें संविधान के भाग-IV (Article 51A) में शामिल किया गया है। इन कर्तव्यों का उद्देश्य भारतीय नागरिकों में देशभक्ति और नैतिकता को बढ़ावा देना है। ये कर्तव्य नागरिकों को यह स्मरण कराते हैं कि अधिकारों के साथ-साथ उनके कुछ कर्तव्य भी होते हैं जिन्हें निभाना आवश्यक है। मूल कर्तव्यों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: मूल कर्तव्यों की अवधारणा सोवियत संघ के संविधान से प्रेरित मानी जाती है। भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने संविधान में अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाए रखने की बात कही थी, लेकिन मूल रूप से भारतीय संविधान में केवल मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया था।
1976 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में, “मूल कर्तव्य” संविधान में जोड़े गए। भारतीय संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्य:
अनुच्छेद 51A के तहत भारतीय नागरिकों के लिए 11 मूल कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं। ये इस प्रकार हैं:
1. संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज, और राष्ट्रगान का आदर करना।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्र के संघर्ष को याद रखना और आदर करना। 3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना और उसे बनाए रखना।
4. देश की रक्षा करना और राष्ट्र की सेवा करना, जब आवश्यकता हो।
5. भारत के सभी लोगों में सामंजस्य और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना।
6. हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना और उसमें सुधार करना।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और ज्ञान के सुधारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
9. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना।
10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों में उत्कृष्टता की दिशा में काम करना, ताकि राष्ट्र निरंतर ऊंचाई प्राप्त कर सके। 11. 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा प्रदान करना। महत्व:
1. राष्ट्र निर्माण में योगदान: मूल कर्तव्य नागरिकों को यह याद दिलाते हैं कि वे केवल अपने अधिकारों का ही उपयोग न करें, बल्कि उनके प्रति जिम्मेदारियां भी निभाएं।
2. सामाजिक सामंजस्य: ये कर्तव्य सामाजिक एकता और भाईचारे को मजबूत करने में मदद करते हैं। 3. नैतिक दिशा: नागरिकों को नैतिक और सांस्कृतिक रूप से जागरूक बनाने का कार्य करते हैं।
4. कानूनी और नैतिक मार्गदर्शन: हालांकि मूल कर्तव्यों का न्यायालय द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रवर्तन नहीं किया जा सकता, फिर भी ये न्यायालयों को नैतिक और कानूनी निर्णयों में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। निष्कर्ष: भारतीय संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्य न केवल नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि नागरिक अपने राष्ट्र के प्रति वफादारी और जिम्मेदारी से काम करें। मौलिक अधिकारों का उपयोग तभी सार्थक होता है, जब नागरिक अपने कर्तव्यों को समझते और उन्हें निभाते हैं। Fundamental Duties